1.साईं भक्तरचित लेखन (दिनांक:12/12/2016)


बाबाजी के श्री मुख से निकली हुई अमृत वाणी

"इस दुनिया में आए हैं तो पूरा मज़ा करके जाएंगे, और जब समय आएगा यहाँ से जाने का तो शहंशाह की तरह अपनी मर्ज़ी से प्राण छोड़के जाएँगे, वेंटीलेटर पर नहीं|"

"जीवन में अपने लिए जीना सीखो, दूसरों को दिखाने के लिए नहीं| जब हम दिखावे में पड़ते हैं तो हमारे मन में लगातार भय रहता है| शरीर में ऊर्जा का प्रवाह बाधित हो जाता है| वो कहते हैं न की बीवियाँ सजती हैं ज़माने के लिए|"

"अपने भीतर देने का भाव पैदा करो| तारीफ की अपेक्षा रखना भी कुछ माँगना है| प्रशंसा किसी को दो और कुछ अच्छे कर्म करो तो दूसरों से प्रशंसा के लिए आतुर मत रहना| भीतर के स्वयं पर विश्वास करना सीखो| आत्म विश्वास से आत्म बल की वृद्धि होगी|"

"प्रति दिन कुछ पंक्तियाँ अपने से कहा करो जिससे की तुम्हे अपने पर विश्वास बने|

मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ|
मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ|
मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ|

मैं बहुत अच्छा व्यक्ति हूँ|
मैं बहुत अच्छा व्यक्ति हूँ|
मैं बहुत अच्छा व्यक्ति हूँ|

मैं जीवन में बहुत सफल हूँ|
मैं जीवन में बहुत सफल हूँ|
मै जीवन में बहुत सफल हूँ|

मैं बहुत दिव्य हूँ|
मैं वहुत दिव्य हूँ|
मैं बहुत दिव्य हूँ|

मेरा बाह्य स्वरुप मेरे अंतर स्वरुप की भाँती सुन्दर और सम्पूर्ण है|
मेरा बाह्य स्वरुप मेरे अंतर स्वरुप की भाँती सुन्दर और सम्पूर्ण है|
मेरा बाह्य स्वरुप मेरे अंतर स्वरुप की भाँती सुन्दर और सम्पूर्ण है|"

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