3.साईं भक्तरचित काव्य

१.अपना वचन निभाये साई 3.साईं भक्तरचित काव्य
 विपदा दूर भगाई साई
 माथे लगाये जो शिरडी की मिट्टी
साई कर दे उसके कष्टो से छुट्टी

२.करम माँगता हूँ अता मागता हूँ
ऐ साई मैं तुझसे दुआ मागता हूँ
रहम कर जहाँ पर ऐ मेरे मालिक
मैं सारे जहाँ का भला मागता हूँ ..

3.मेरे साई मेरे मालिक मेरी रखना लाज
कभी किसी का न मैं होऊँ मोहताज़
मुझे है बस तेरी ही आस
मेरे साई मुझे रखना सदा अपने चरणों के पास...

४.किसी पीर ने क्या खूब कहा है-

वेख फरीदा मिट्टी खुल्ली (कबर),
मिट्टी उत्ते मिट्टी डुली (लाश);
मिट्टी हस्से मिट्टी रोवे (इंसान),
अंत मिट्टी दा मिट्टी होवे (जिस्म);
ना कर बन्दया मेरी मेरी,
ना आये तेरी ना आये मेरी;
चार दिना दा मेला दुनिया,
फ़िर मिट्टी दी बन गयी ढेरी;
ना कर एत्थे हेरा फेरी,
मिट्टी नाल ना धोखा कर तू,
तू वी मिट्टी ओ वी मिट्टी;
जात पात दी गल ना कर तू,
जात वी मिट्टी पात वी मिट्टी,
जात सिर्फ खुदा दी उच्ची,
बाकी सब कुछ मिट्टी मिट्टी।

५.मेरे साई मेरे मालिक मेरी रखना लाज
कभी किसी का न मैं होऊँ मोहताज़
मुझे है बस तेरी ही आस
मेरे साई मुझे रखना सदा अपने चरणों के पास...

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