काकड आरती- सुबह 4:30 बजे



शिर्डी साई बाबा की सुबह की आरती

(संत तुकाराम इस आरती के रचनाकार )

जोडूनिया कर (भूपाळी)
जोडूनिया कर चरणी ठेविला माथा ।
परिसावी विनंती माझी सदगुरुनाथा ।। १ ॥

असो नसो भाव आलो तुझिया ठाया ।
कृपादॄष्टी पाहे मजकडे सदगुरूराया ॥ २ ॥

अखंडित असावे ऐसे वाटते पायी ।
सांडूनी संकोच ठाव थोडासा देई ॥ ३ ॥

तुका म्हणे देवा माझी वेदीवाकुडी ।
नामे भवपाश हाती आपुल्या तोडी । ४ ॥

हिन्दी मे

मै हाथ जोड्कार अपना माथा आपके चरणों मे रखता हूँ।
है सदगुरु नाथ, आप मेरी विनती सुनिए ।

मुझमें भाव हो न हो, मै आपकी शरण मे आया हूँ ।
हे सदगुरूराया, मुझको अपनी कृपादॄष्टी दीजिये ।

मै सतत् आपके चरणों में रहूँ,ऐसी मेरी विनती है।
इसीलिए निस्संकोच होकर मुझे अपनी शरण में थोडी सी जगह दीजिए।

तुका कहतें है, मै जिस भी तुच्छ रूप से आपको पुकारूँ,हे देव, अपने हाथों से मेरे सांसारिक बन्धनों को तोड़ देना |

२. उठा पांडुरंगा(भूपाली)
(संत जनाबाई रचित आरती )

उठा पांडुरंगा आता प्रभातसमयो पातला ।
वैष्णवांचा मेळा गरुदापारी दाटला ।। 1 ।।

गरुडपारापासुनी महाद्घारा-पर्यत ।
सुरवरांची मांदी उभी जोडूनियां हात ।। 2 ।।

शुक-सनकादिक नारद–तुबंर भक्तांच्या कोटी |
त्रिशूल डमरु घेउनि उभा गिरिजेचा पती ।। 3 ।।

कलीयुगींचा भक्त नामा उभा कीर्तनीं ।
पाठीमागे उभी डोळा लावुनिया जनी ।। 4 ।।

हिन्दी मे

हे पांडुरंग(पंढरपुर के अवतार–विठ्ठल भगवान, जो भगवान विष्णु के अवतार्माने जाते हैं) उठिए, अब प्रातःबेला आई है।
गरुडपार(वैष्णव मन्दिरों में गरूण चबूतरा,जिस पर गरूड स्तम्भ स्थापित होतहै) में वैष्णव भक्त भारी संख्यामें एकत्रित हो गए हैं।

गरुड़पार से लेकर महाद्वार(मन्दिर का मुख्य द्वार) तक,देवतागण दोनों हाथजोड़कर दर्शन हेतु खड़े हैं|

इनमें शुक–सनक (एक श्रेष्ठ मुनी का नाम), नारद–तुंबर(एक श्रेष्ठ भक्त)जैसेश्रेष्ठ कोटि के भक्त हैं।
गिरिजापती शंकर भी त्रिशूल और डमरू लेकर खड़े हैं।

कलियुग के श्रेष्ठ भक्त नामदेव आपकी महिमा का गान कर रहे हैं।
उनके पीछे जनी(नाम देव की दासी जो विठ्ठल महाराज की अनन्य भक्तथीं)आप में भाव–विभोर हो कर खड़ीहैं।

३. उठा उठा (भूपाली) 
श्री कृष्ण जोगिस्वर भीष्म इस आरती के रचनाकार

उठा उठा श्री साईनाथ गुरु चरणकमल दावा । 
आधि-व्याधि भवताप वारुनी तारा जडजीवा ।। ध्रु. ।।

गेली तुम्हां सोडुनिया भवतमरजनी विलया |
परि ही अग्य्यानासी तुमची भुलवी योगमाया ||

शक्ति न आम्हां यत्किंचितही तिजला साराया ।
तुम्हीच तीते सारुनि दावा मुख जन ताराया ।। चा. ।।

भो साइनाथ महाराज भवतिमिरनाशक रवी ।
अग्यानी आम्ही किती तव वर्णावी थोरवी । 
ती वर्णिता भागले बहुवदनि शेष विधि कवी ।। चा. ।।

सकृप होउनि महिमा तुमचा तुम्हीच वदवावा ।। आधि. ।। उठा.।। 1 ।।

भक्त मनी सद्घाव धरुनि जे तुम्हां अनुसरले ।
ध्यायास्तव ते दर्शन तुमचें द्घारि उभे ठेले ।।

ध्यानस्था तुम्हांस पाहुनी मन अमुचे धाले ।
परि त्वद्घचनामृत प्राशायाते आतुर झाले ।। चा. ।।

उघडूनी नेत्रकमला दीनबंधु रमाकांता ।
पाही बा क्रुपाद्रुष्टि बालका जशी माता । 
रंजवी मधुरवाणी हरीं ताप साइनाथा ।। चा. ।।

आम्हीच अपुले काजास्तव तुज कष्टवितों देवा ।
सहन करिशिल ते ऐकुनि घावी भेट कृष्ण धावा ।। 2 ।। आधिव्याधि. ।। उठा उठा. ।।

हिन्दी मे

हे श्री गुरु साई नाथ, उठिए, हमें अपने चरण्–कमलों के दर्शन दीजिए।
हमारे समस्त मानसिक व शारीरिक कष्टों और सांसारिक क्लेशों का हरण्करके, हम देहधारी जीवों का तारणकरिए।

सांसारिक अग्यानरूपी अंधकार आपको छोड चुका है।
परन्तु हम अग्यानी लोगों को आपकी योगमाया भ्रम में डाल रही है।

हममें इस माया को दूर करने की किंचित भी क्षमता नहीं,इसलिए आप इसमाया के पर्दे को हटाकर लोगों कोतारने के लिये अपना मुखदर्शन दीजिए।

हे साई नाथ महाराज, आप इस संसार के अन्धकार को नष्ट करने वाले सूर्ये हैं।
हम अग्यानी हैं, हम आपकी महिमा का क्या बखान करें।
अनेक शीर्ष वाले आदिशेष(शेषनाग), ब्रह्मा और प्रशस्त कवि भी जिसकाबखान करते थक गए हैं।

कॄपा करके आप ही अपनी महिमा का बखान हमसे करवा लीजिए।

अपने मन में सदभाव लेकर जिन भक्तों ने आपका अनुसरण् किया,वे भक्तजनदर्शन पाने हेतु आपके द्वार परखड़े हैं।

हम आपको ध्यान में स्थित पाकर आनंद–विभोर हैं,परन्तु आपके वचनों काअमॄत पीने के लिए आतुर भी हैं।

हे दीनों के बन्धु, रमाकांत(भगवान विष्णु) अपने नेत्रकमल खोलकर हम परवैसे ही क्रुपाद्रुष्टि डालिए जैसी माँअपने बच्चों को देती है।
हे साईनाथ, आपकी मधुर वाणी हमें आनंद–विभोर करती है और हमारे समस्तकष्ट व संताप हर लेती है।

हे देव हम अपनी परेशानियों से आपको बहुत कष्ट पहुँचातें हैं, फिर भी उन्हेंसुनते ही वे सारे कष्ट सहकर आपदौड़कर आईए, ऐसी कॄष्ण(रचनाकार कानाम) की आपसे विनती है।
हे! श्री गुरु साईंनाथ उठिए…

दर्शन द्या ( संत नामदेव ) शिर्डी साई बाबा आरती
४. दर्शन द्या (भूपाली) (संत नामदेव इस आरती के रचनाकार )

उठा पांडुरंगा आता दर्शन द्या सकळा ।
झाला अरुणोदय सरली निद्रेची वेळा ॥ १ ॥

संत साधू मुनि अवधे झालेती गोळा ।
सोडा शेजे सूखे आता बधु द्या मुख्कमळा ॥ २ ॥

रंगमंड्पी महाद्वारी झालीसे दाटी ।
मन उताविल रूप पहावया द्रुष्टी ॥ ३ ॥

राही रखुमाबाई तुम्हां येऊ द्या दया ।
शेजे हालवुनी जागे करा देवराया ॥ ४ ॥

गरुड़ हनुमंत उभे पाहती वाट ।
स्वर्गीचे सुरवर घेउनि आले बोभाट ॥ ५ ॥

झाले मुक्तद्वार लाभ झाला रोकडा ।
विष्णुदास नामा उभा घेउनी काकडा ॥ ६॥

हिन्दी मे

है पांडुरंग, उठिये, अब सबको दर्शन दीजिये ।
सूर्योदय हो गया है और निद्रा की बेला बीत गयी है ।

संत, साधू, मुनि, सभी एकत्रित हो गए हैं ।
अब आप शयन-सुख छोड़कर हमें अपने मुखकमल के दर्शन दीजिये ।

मण्डप से लेकार महाद्वार तक भक्तों की भीड़ है ।
सभी का मन आपके श्रीमुक को देखने के लिए लालायित है ।

है राही और रखुमाबाई, हम पर दया करिए ।
शैय्या को थोड़ा हिलाकर देव पांडुरंग को जगाईए ।

गरूड़ और हनुमंत दर्शन की प्रतीक्षा में खड़े हैं, स्वर्ग से देवी-देवता
आकर आप की महिमा का गान कर रहे हैं ।

द्वार खुल गए हैं और हमें आपके दर्शन का धन प्राप्त हुआ है ।
विष्णुदास, नामदेव आरती के लिए काकडा लेकर खड़े हैं ।

५। पंचारती (अभंग)
श्री कृष्ण जोगिस्वर भीष्म इस आरती के रचनाकार

घेउनिया पंचारती। करू बाबांसी आरती।
करू साईसी आरती । करू बाबांसी आरती ॥ १ ॥

उठा उठा हो बांधव । ओवाळृ हा रखुमाधव।
साई रमाधव। ओवाळृ हा रखुमाधव ॥ २ ॥

करुनिया स्थीर मन । पाहू गंभीर हे ध्यान।
साइचे है ध्यान। पाहू गंभीर हे ध्यान ॥ ३ ॥

कृष्णनाथा दत्तसाई । जडो चित तुझे पायी ।
चित देवा पायी। जडो चित तुझे पायी ॥ ४ ॥

हिन्दी मे

पंचारती लेक्रर हम बाबाकी आरती करें ।
श्री साईं की आरती करें, बाबा की आरती करें ।

है बंधुओं उठो उठो , रखुमाधवकी आरती करें ।
श्री साई रमाधव की आरती करें। साई जो रखुमाधव हैं, उनकी आरती करें।

अपने मन को स्थिर करते हुए हम श्री साई के गम्भिर ध्यानस्थ रूप को निरखें।
श्री साई के ध्यानमग्न रूप का दर्शन करें। उनके गंभीर ध्यान को निहारें।

है कृष्णनाथ दत्तसाई, हमारा ये मन आपके चरणों में स्थीर हो।
है साई देव, हमारा चित्त आपके चरणों मे लीन हो। आपके चरणों में हमारा चित्त स्थिर हो।

यहाँ साई बाबा की छठी आरती है चिम्न्माया रूप जोगेश्वर भिस्म्हा रचित
चिन्मय रूप (काकड़ रूप)
श्री कु. जा. भीष्म रचित
काकड आरती करितो साईनाथ देवा ।
चिन्मयरूप दाखवी घेउनी बालक–लघुसेवा ॥

काम क्रोध मद मत्सर आटुनी काकडा केला।
वैराग्याचे तूप घालुनी मी तो भिजविला।।

साइनाथ गुरुभक्तिज्वलने तो मी पेटविला । 
तदवृत्ति जालुनी गुरुने प्रकाश पाडिला। 
द्वैत–तमा नासूनी मिळवी तत्स्वरूपी जीवा॥ १ ॥ 
चि. का… ॥

भू–खेचर व्यापूनी अवधे ह्र्त्कमली राहसी। 
तोचि दत्तदेव तू शिर्डी राहुनी पावसी॥

राहुनी येथे अन्यत्रही तू भक्तांस्तव धावसी। 
निरसुनिया संकटा दासा अनुभव दाविसी।
न कळे त्वल्लीलाही कोण्या देवा वा मनवा॥ २ ॥ 
चि.॥ का… ॥

त्वधय्शदुंदुभीने सारे अंबर हे कोंदले। 
सगुण मूर्ति पाहण्या आतुर जन शिर्डी आले।।

प्राशुनी त्वद्व्चनामृत अमुचे देहभान हरपले। 
सोडुनिया दुरभिमान मानस त्वच्चरणी वाहिले।
कृपा करुनिया साईमाऊले दास पदरी ध्यावा ॥ ३ ॥ 
चि.॥ का… ॥

हिन्दी मे

है साईनाथ देव, मे (प्रातः बेला) काकाड़ आरती करता हूँ। मुज बालक कीअल्प–सेवा को स्वीकार करिये औरअपने चिन्मय रूप का दर्शन दीजिये।

मेने काम, क्रोध, लोभ और इर्ष्या को मरोड़कर (काकड़) बतियाँ बनायी है औरवैराग्या रुपी घी में उन्हें भिगोयाहै।

इनको मेने श्री साइनाथ के प्रति गुरुभक्ति की अग्नि से प्रज्वलित किया है। मेरीदुष्प्रवृतियों को जलाकर हे गुरु,आपने मुझे आत्म प्रकाशित किया है। हे साई,आप द्वैतवृति के अन्धकार को नष्ट कर मेरे जीव को अपने स्वरुपमें विलीन करलीजिये। अपना चिन्मय रूप… ।

समस्त पृथ्वी–आकाश में व्याप्त आप सभी प्राणियो के ह्रदय में वास करते हैं।आप ही दत गुरुदेव हैं, जो शिर्डी मेंवास करके हमें धन्य करते हैं।

यहाँ (शिर्डी में) होते हुए आप अपने भक्तों के लिए कही भी दौड़ते हैं। भक्तों केसंकटों का निवारण करके अपनीअनुभूति देते हैं । न तो देवता और नही मनुष्य,आप की इस लीला को समज सके हैं।

आपके यश की दुंदूभी से सारा आकाश और समस्त दिशाएँ गुंजायमान हैं ।आप के दिव्य सगुण रूप के दर्शन केलिए आतुर लोग शिर्डी आये हैं।

वे आपके वचनामृत पाकर अपनी सुध–बुध खो चुके हैं और अपना अभिमानऔर अंहकार छोड़ कर आपके चरणोंके प्रति समर्पित हैं। है साई माँ, कृपाकरके अपने इस दास को अपने आँचल की छाँव मे ले लीजिये।

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